अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद अब तक तीन देश चीन, पाकिस्तान और रूस इसका समर्थन कर चुके हैं. चीन तालिबान को मान्यता देने वाला पहला देश भी बन चुका है. इस बीच बड़ा सवाल ये है कि भारत क्या अफगानिस्तान में तालिबानी शासन को मान्यता देगा? विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने इस पर भारत का रुख साफ किया है. जयशंकर ने कहा, ‘भारत वेट एंड वाच की स्थिति में है, क्योंकि अफगानिस्तान में हालात अस्थिर हैं. भारत अफगान के हालात पर नजर बनाए हुए है. फिलहाल हमारा पूरा फोकस वहां से सभी भारतीयों को सुरक्षित निकालने पर है.’
विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘अफगान लोगों के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक हैं और यह जारी है. यह आने वाले दिनों में अफगानिस्तान के प्रति हमारे नजरिये को तय करेगा. ये शुरुआती दिन हैं. इस समय हमारा ध्यान भारतीय नागरिकों (अफगानिस्तान में) की सुरक्षा पर है. तालिबान के साथ बातचीत के सवाल पर जयशंकर ने कहा कि इस समय हमारी नजर काबुल के तेजी से बदलते हालात पर है. तालिबान और उसके प्रतिनिधि काबुल में हैं. हमें उनसे वहां से बात करनी होगी.
दुनिया के कई देशों के साथ भारत पहले ही यह जता चुका है कि बंदूक की नोंक की दम पर सत्ता पर काबिज होने वालों को मान्यता नहीं दी जाएगी. भारत, अमेरिका और चीन समेत 12 देश संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के साथ यह फैसला पहले ही कर चुके हैं कि वे अफगानिस्तान में किसी भी ऐसी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जो बलपूर्वक नियंत्रण हासिल करना चाहती है.
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में संवाददाताओं से कहा, ‘वह (अफगानिस्तान की स्थिति) यहां मेरी वार्ताओं के केंद्र में है, संयुक्त राष्ट्र महासचिव और अन्य सहयोगियों के साथ ही अमेरिका के विदेश मंत्री से भी इस पर चर्चा कर रहा हूं.’
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में प्रौद्योगिकी व शांति स्थापना पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली बहस की अध्यक्षता की जिसका विषय ‘रक्षकों की रक्षा’ रहा. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस भी मौजूद रहे. अपने संबोधन के दौरान जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की सुरक्षा में प्रौद्योगिकी की भूमिका को रेखांकित किया और शांति बनाए रखने में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला.
अफगानिस्तान में तालिबान को भारत मान्यता देगा या नहीं?
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