सीमा पार पाकिस्तान में सिखों की बहुत धार्मिक यादें बरकरार है। सीमा के नजदीक किलोमीटर पर रावी के शोर पर डेरा बाबा नानक स्थित है और रावी के दूसरे शोर के 4 किलोमीटर पर गुरुद्वारा करतारपुर साहब सिखों के लिए सदा ही आकर्षण का केंद्र रहेगा। 1965 की भारत-पाकि जंग के पश्चात बॉर्डर कर दिए गये और परिवहन एक पुल्ल के जरिए बरकरार रही। करतारपुर जहाँ सिखों के पहले गुरू नानक साहब जोती जोत समाये इस स्थान को गुरुओं की धरती भी कहा जाता है। गुरुद्वारा करतारपुर साहब में गुरु ग्रंथ साहब का हाथ लिखावट पुरातन और पहला सरूप प्रकाश है। इस में कोई संदेह नहीं कि करतारपुर की धरती सिख गुरुओं की बात सुनाती हुई थकती नहीं। डेरा बाबा नानक भी सिखों के लिए बेहद्द पूजनी स्थान है। इन धार्मिक स्थानों पर पहुँचने के लिए पाकिस्तान की ओर से जिस रास्ते का निर्माण किया जा रहा है, वह 125 किलोमीटर का रास्ता है और जिस को तय करने के लिए वीजा और सख़्त संरक्षण घेरे में से निकलणा पड़ेगा।असल में वाजपाई सरकार के समय 1999 में डेरा बाबा नानक और करतारपुर कॉरिडोर सिख श्रद्धालुओं के लिए खोलने का सुझाव पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ को दिया गया था, किन्तु लाहौर समिट के इस सुझाव को जनरल परवेज मुशर्रफ की ओर से अनसुना कर दिया गया।
बीते वर्ष इमरान खान के प्रधान मंत्री बनने के उपरांत 26 नवम्बर 2018 को इस पर दोबारा काम चालू करवाया गया और पाकिस्तान ने इस कार्य को गुरु नानक देव जी की 550वीं जन्म शताब्दी के मौक़े नवम्बर 2019 तक पूरा करने की घोषणा की। 1947 के विभाजन के पश्चात बड़ी गिनती में सिखों ने अपील की थी कि ननकाणा साहब और करतारपुर की धरती को भारत के कब्जे तहत लाया जाये. 1969 में 500 साला मौक़े प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी की ओर से इस पर पाकिस्तान से बातचीत भी की गई. जिस उपरान्त 1974 में दोनों देशों की ओर से सिख श्रद्धालुओं के लिए रास्ता खोले जाने का सांझा मता पास किया गया। बता दें कि 1947 के विभाजन के पश्चात करतारपुर गुरुद्वारा साहब के इलावा गैर मुसलिम धार्मिक केंद्र बंद कर दिए गए थे और इन को मवेशी थानों में बदल दिया गया था, इसके सबूत इंटरनैट्ट से भी प्राप्त किये जा सकते हैं। जनरल मुशर्रफ के प्रधान मंत्री बनने के उपरांत गैर मुसमिल धार्मिक स्थानों को दोबारा बहाल किया गया था। भारत की ओर से पाकिस्तान को मुफ़्त वीजा नीती भी पेश की गयी थी, जो पाकिस्तान की ओर से ख़ारिज कर दी गई. पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर के लिए कितना संजीदा है, इस बारे में टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. इमरान खान की ओर से बरलिन दीवार की उदाहरनें दीं जाती हैं, किन्तु करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के समय खालिसतानी समर्थक बिशन सिंह, कुलजीत सिंह, मनिंदर सिंह, गुरपाल सिंह चावला मुख्य अतिथियों में सम्मिलित थे. यहाँ तक कि पाकिसतानी श्रोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, पाकिसतानी फौज के तहत काम करने का लिए मजबूर है।
बीते वर्ष लाहौर गुरुद्वारा में नतमसतक होने गये भारतीय राजदूतावास के कर्मचारियों को प्रबंधकों कमेटियों से भेंट करने की इजाजत नहीं दी गई.
चावला सिख रिफरैंडम 2020 का समर्थक है। भारत और पाकिस्तान की ओर से करतारपुर कॉरिडोर की घोषणा उपरान्त अमृतसर में हुए बम विस्फोटों के पीछे मीडिया में चावला का नाम भी लिया जा रहा है, जिस में तीन बेकसूर लोगों की मृत्यु हुई। पुलिस कार्रवाई के दौरान शबनमदीप सिंह गृफ़तार किया गया, जिसने बम विस्फोटों के पीछे गोपाल सिंह चावला का खुल कर नाम लिया। चावला की ओर से मीडिया में दिये एक बयान में कहा गया, अगर भारत तुम्हारी माता है तो पाकिस्तान तुम्हारा पिता है। माँ हमेशां पिता के हुकुम के अनुसार चलती है। भारतीयों को अपने पिता पाकिस्तान से डरना चाहइए, नहीं तो आने वाले समय में भारत को निसतो नाबूत कर दिया जाएगा। उसने पाकिस्तान जिंदाबाद का नाअरे भी लगाये। उसने अल्ल्हा को गवाह मानते हुए खालिसतान और कश्मीर की आज़ादी हर सूरत में करवाये जाने का हुंगारा भरा।
पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर लिए कितना संजीदा ?
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