कभी समय था जब हम अपने किसी प्रिय को लिखती कोई संदेशा भेजते थे तो कई-कई दिन लग जाते थे. भाव उस जमाने में चिट्ठी-पत्र ही संदेशा देने का रास्ता था, किन्तु जिस तरह समय बदला हमारी चिट्ठी पत्र का स्थान ईमेल ने ले लिया. इस के आगे फिर सकाईप, टविट्टर, फेस बुक, वटस अब और पता नहीं क्या-क्या है, जिस जरिए हम कुछ सकिंट में ही अपने किसी प्रिय को सिर्फ़ संदेशा ही नहीं भेजते, बल्कि उस के दर्शन कर के भी तरोताजा हो जाते हैं, किन्तु यह बात बहुत ही दुख्खी मन से कहनी पड़ रही है कि विज्ञान ने जो साधन इंसान के भले के लिए इजाद किए, उस का आज 90% लोग दुरुपयोग कर रहे हैं, भाव आज पूरी दुनिया में सोशल मीडीआ का हो रहा दुरुपयोग हमारे जीवन को कड़वा बनाने में अहम रोल निभाअ रहा है। इस से दुख्खी कुछ इलैकट्रानिक मिडिया ने तो विशिष्ट प्रोग्राम भी चलाये हैं कि कि सत्य क्या है ? अवाम को पता चल पाये। इन में बताया जाता है कि हर विडिओ असली नहीं और हर तस्वीर सत्य नहीं. अनेक विडिओ और तस्वीरें आज सोशल मीडीआ पर घूम रहीं हैं जिनका सत्य से कोई नाता नहीं. प्रिंट मीडीआ अथवा इलैकट्रानिक मीडिया जो भी जानकारी लोगों के साथ साझी करता है उस की वह पहले खुद अच्छी तरह जाँच करता है फिर लोगों से साझी करता है। प्रिंट मीडीआ जा इलैकट्रानिक मीडिया से प्रकाशित हर ख़बर के लिए वह 100% समर्पित और जिंमेवार होता है।
मीडिया समाज का शीशा है, समाज जो भी करता है उस को मीडिया समाज को समय समय पर दिखाता रहता है, किन्तु आज सोशल मीडिया जिस कद्र लोगों के मस्तिष्क के ऊपर घर कर रहा है वह बहुत ही संजीदा ढंग से सोचने वाला मसला है। पता नहीं क्यों आज लोगों को प्रिंट मीडीआ जा इलैकट्रानिक मीडिया से अधिक सोशल मीडीआ के ऊपर ज़्यादा यकीन हो गया है। छोटी-छोटी घटना को भी सोशल मीडीआ में इस ढंग से पेश किया जा रहा है यानो दुनिया खत्म होने के किनारे है, किन्तु अगर उस घटना की हक़ीकत पता लगती है तो लोग अचंभित हो जाते हैं कि यह तो सब असत्य ही था, फिर सोचा जाता है कि यह ख़बर कहां से आई? किस ने भेजी, क्यों भेजी और कब भेजी ? इसका फिर किसी के भी पास कोई जुआब नहीं होता। सोशल मीडीआ ऊपर पोसट हो रही गलत पोसट के कारण लोगों का समाज और देश के प्रति धारणा को भी गलत बनाया जा रहा है। कुछ समाज और इंसानियत विरोधी ताकतें गलत और अधूरी जानकारी सोशल मीडीआ में इस तरह परोस रहा हैं कि समझो कि हम तो सदिओं से ही गुलाम हैं. इस ग़ुलामी से बचने के लिए हमें धर्म ही की जरूरत नहीं बल्कि देश की भी जरूरत है, जिस के लिए सोशल मीडीआ के ऊपर कभी कोई मूवमैˆट को भी अंजाम दिया जाता है और जिस से लोगों को यह शैतानी खेल का पता चल जाता है, फिर उनको जज़्बाती करके अपने साथ जोड़ने के लिए तरह तरह की मनघड़त दास्ताँ सोशल मीडीआ के ऊपर पोसट की जातीं हैं, जो कि बहुत ही घटिआ कार्रवाई समझी जा सकती है। जो लोग सोशल मीडीआ को हथिआर बना के आज आम लोगों के दिमाग में नफ़रत का बारूद भरने की कोशिश में हैं, उनको किसी भी धरम और देश से कोई सरोकार नहीं (असल में ऐसे लोगों का तो कोई धरम होता भी नहीं) वह लोग तो सिरफ़ अपनी ऐशो अराम भरी जिँदगी के सरूर में अपने हुक्मरानों को खुश करके बख़शिश प्रापत करते हैं.
सोशल मीडीआ का हिस्सा बने समूह भारतीओं को ताकीद है कि सोशल मीडीआ का वैध और सार्थक उपयोग कर अपना और देश का भला करने में योगदान दें. कभी भी कोई निर्णय सिर्फ़ चंद बिन्हा सिर पैर की तस्वीरें जा ख़बरों से नहीˆ किया जा सकता। समाज प्रतिद्वंदी अनसरों की तरफ से सोशल मीडीआ के ऊपर फैलाये जा रहे सै़तानी छड़यंतर से बाहर निकलिए. सोशल मीडीआ बुरा जा गलत नहीं, गलत है तो सिर्फ़ इस की दुर्वरतों कर रहे लोग। सोशल मीडीआ के वैध उपयोग से जहाँ हम अपनी जानकारी में वृद्धि कर सकतें हैं, वहां ही इस से अपनी कामयाबी और तरक्की को भी चार चाँद लगा सकते हैं. आएं हम इस बात के प्रति सुचेत हों कि सोशल मीडीआ के ऊपर आम लोगों को किये जा रहे गुंमराहकुंन प्रचार को नाकारते हुए अपना पारस्परिक प्यार और एकता बना के रखें और इंसानियत विरोधी ताकतों को उन के मकसद में नाकाम करें, अपने महान देश भारत को कामयाबी की बुलंदिओं पर लेके जाएँ.